1 Part
23 times read
3 Liked
वृक्षों की व्यथा ************** अरे! अरे! मत काटो मुझको,अंतर्मन की व्यथा सुनो। स्वार्थों की बलि मुझे चढ़ाकर इतने निष्ठुर नहीं बनो। सघन बादलों से अमृत जल, बूंदें बन जब बरसेगा, सजनी ...