वृक्षों की व्यथा

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वृक्षों की व्यथा ************** अरे! अरे! मत काटो मुझको,अंतर्मन की व्यथा सुनो।  स्वार्थों की बलि मुझे चढ़ाकर इतने  निष्ठुर नहीं बनो। सघन बादलों से अमृत जल, बूंदें बन जब बरसेगा, सजनी ...

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