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मुंडेर पर न कोई सुग्गा, रटे नहीं मिट्ठू राम-राम। जोहे नहीं बाट पहुना की, भाए नहीं संग अतिथि शाम। खो गए जंगलात गाँव से, बिछड़ती हैं राहें छाँव से, भटकते वनचर ...