रुबाइ

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गले मिली कभी उर्दू जहाँ पे हिन्दी से,  निखर के आ गई बहार वहीं बिन्दी से।  मेरे मिज़ाज़ में उस अंजुमन की ख़ुशबू है,  मिली है गंगा जहाँ श्यामली कालिंदी से।।  ...

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