तबसे है काँटों की एक क़बा मुझमें, जबसे रहती है तेरी वो "ना" मुझमें.. दुनिया मुझसे क्या क्या पूछा करती है, दुनिया को इतनी दिलचस्पी क्या मुझमें.. बस वोही मौसम है ...

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