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*बह गई पीर* बह गई पीर आखिर कब तलक सर्द रहती, भावों की इक नदी तोड़ पलक कगार छलक गई। बहुत चाहा बहुत रोका जज्बात के झंझावातों को हवा-ए-बेवफाई जरा क्या ...