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क़भी जब डायरी अपनी उठाकर बैठ जाता हूँ क़मर को चारपाई से लगाकर बैठ जाता हूँ लिखे उसमें क़भी अशआर जो एक एक को पढ़ता हूँ कुछ एक को अपने जीवन ...