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विषय_ टूटती उम्मीदों की उम्मीद ****************************** क्यूं असहाय बना मानव, उचटती आंखों की भी नींद। किंकर्तव्यविमूढ़ बना जो, जो समय का होता है मुरीद। घनघोर निराशा के मेघों संग, टूटती उम्मीदों ...