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मंज़िल न ढूँढ़ पाई, पहली बरखा आई, तारिणी थी काग़ज की, पानी में बह गई। पुष्प गुच्छ गुथ गए, गुलदान सज गए, कुसुम थे काग़ज के, गंध ही रूठ गई। साहिल ...