कलयुग में जख्मी हुई है मानवता

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कलयुग में जख्मी हुई है मानवता कैसे बताऊं किसी को मैं, अपनी व्यथा दिल की न जाने ऐसा क्यों हो रहा है  इंसानियत धीरे धीरे कहीं खो रहा है  कलयुग में ...

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