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आग इन्कलाब की जला के रहेगी, तारीख़ अपने-आप को दोहरा के रहेगी! ज़िन्दगी अब मौत से टकरा के रहेगी, हर चीज़ काएनात की थर्रा के रहेगी! झपक रही हैं देर से ...