ज़िन्दगी के गीत ग़ज़ल गा के रहेगी

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आग इन्कलाब की जला के रहेगी,  तारीख़ अपने-आप को दोहरा के रहेगी!  ज़िन्दगी अब मौत से टकरा के रहेगी,  हर चीज़ काएनात की थर्रा के रहेगी!  झपक रही हैं देर से ...

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