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हास्य-व्यंग्य(दोहे) 'कुक्कुर-कल्चर' का हुआ,घर-घर खूब प्रसार। गो माता खा ठोकरें, रोतीं हैं बेजार।। बैठा कुक्कुर 'कार' में, चाटे गोरी - गाल। 'कार' चलाते 'प्रेमजी',नहीं समझते 'चाल'।। 'लिव-इन' के संबंध का,दूषित चला ...