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कठपुतली सा जीवन कठपुतली अपने जीवन को परमारथ में जीती, दूजा उसको नाच नचाता हँस परतंत्रता ज़हर को पीती। बाँध सकल शरीर में धागा उसको पीड़ा पहुंँचाए, यही है रोजी- रोटी ...