हम महकते-महकते गए

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हम महकते-महकते गए जब दरख़्तों पर पत्ते उगे, फूल खिलते ही खिलते गए। मन में भीनी महक जब वसंती, हम महकते-महकते गए।। ख़ुमारी का छाया था आलम, बेख़बर थीं हवाएँ-फ़ज़ाएँ। बेख़ुदी ...

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