सर गुज़िश्त आज़ाद बख्त बादशाह की

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               आखिर उसी क़िले के पास जिसका मैंने पहले रोज़ दरवाज़ा बंद देखा था ,ले  गए। और बहुत से आदमियों ने मिल कर ताला  खोला ...

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