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एक चढ़े दूजा गिरे, फिर क्यों दोनों संग एक रूप दो गोलियाँ, लाल-हरा इक रंग लाल-हरा इक रंग, सियासी चालें गहरी धर्म-कर्म का ढोंग, सभी इक जैसी ठहरी महावीर कविराय, गिरे ...