सुबह जब मैंने अपनी आँखें खोलीं, तो कुछ अलग था। रौशनी। वो अब भी जंगल के बादलों भरे दिन की सी हरी,स्लेटी रौशनी थी, लेकिन किसी तरह से ज़्यादा ...

×