1 Part
442 times read
22 Liked
ढूंढती रही खुद को ताउम्र, कितने अपनों के सपनों में, कहीं भी थाह नहीं मिलती, कहीं भी पनाह नहीं मिलती, तलाशती रही मृगतृष्णा में, हर रिश्तों के रेगिस्तान में, स्नेह नीर ...