1 Part
143 times read
6 Liked
ग़ज़ल छिटकी थी आसमान में बेताज चांदनी। मदहोश कर रही थी हमें आज चांदनी।। ख़ामोश जमाने की वो गहराई रात थी। बनती गई थी तब मेरी हमराज चांदनी।। बिखरा के रोशनी ...