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यादों की पोटली लिए परदेस आ बसी हूं... मृगतृष्णा से बनी इस जिंदगी में.... थी चाह जिसे पाने की.... पाकर भी उसे कुछ ढूंढ रही हूं..... तन्हाई में खोल पोटली चुपके ...