जीवन प्रभात का बचपन

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जीवन प्रभात का है बचपन,  भू-रज में जो खेल रहा। तृष्णा बस नीर का होता,  वक्र-रव मुख से बोल रहा। किसलय की कोमलता पग में, मंद गति से डोल रहा। अचल ...

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