ढलती हुई शाम

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मुक्तक ढलती  हुई  शाम , फिर  आ  रही  है। अंधेरे   समेटे  कई  ,   ला   रही   है।। जलाओ चिरागों  को, दीपावली  से। तो  खुशियां  मिलेंगी, ये समझा रही है।। रचनाकार ✍️ भरत ...

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