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सुहानी वादियाँ और तुम सिंदूरी हो रही माँग उषा की, प्रातः की अरुणिम बेला में। नव पुष्पों संग भ्रमर विचरे, विमुग्ध हो प्रणय लीला में। कितनी मधुरिम लगती वादी। किरणों की ...