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शीर्षक- कल्पना मेरी अन्तस् की कोर को सहलाती कल्पना मेरी, पाँव न टिकने दे ज़मीं पर मेरे कभी, हवा संग ले उड़े नभ से क्षितिज़ तक, कैसी है ये मनोवृति, कैसा ...