माँ

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जहाँ हमारी सोंच खतम वहां पर माँ स्वयं दिखी  हम पढ़ लिखकर भी अनपढ़ थे माँ अनपढ़ होकर पढी लिखी  माँ गंगा जमुना सी अविरल माँ काशी जैसी न्यारी थी  माँ ...

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