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दिनों-महीनों खेलूं जब आँख मिचौनी बादल के उस पार मिटाऊं क्लान्ति और ढूंढता रहूं -- शांत -एकान्त या जब हाहाकार मचा दूं अपनी ज्योति-किरण से बन दधीच उत्सर्गित होऊं और दिखाऊ ...