इंसान और संबल

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खूब ,दुःख फैला, है भाई चहुँ ओर, निराशा है छाई पर, भोर उन्हीं किरणों से निशा लिए शीतलता आई, जल का गुण नहीं बदला है फिर वायु, खूब चले पुरवाई ये ...

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