अवाम और रहबर

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वो जो तेरे वादों में सत्तर छेद ना होते यहाँ वहां यूँ लटकते, ये प्रेत ना होते देख, लटकन में क्या कशिश है इनकी उलटी आँखों में भी आस की खनकी ...

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