कितने चेहरे हैं मेरे.. (नज़्म)

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कितने चेहरे हैं मेरे,ख़ुद भी उलझ जाता हूं कोनसा चेहरा हैं अपना ना समझ पाता हूं एक  चेहरा  है  खुशियों  से  लबरेज़ मगर एक चेहरे पे तो  मातम सा छाया रहता ...

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