शाम का वक़्त हो चला था, चारों तरफ किसी श्मशान की भांति सन्नाटा पसरा हुआ था। अरुण एक पहाड़ी चढ़ता हुआ नजर आ रहा था, उस टूटी ही पक्की सकड़ को ...

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