1 Part
484 times read
6 Liked
रूपसि तेरे रूप अनेक प्रकृति तेरे कितने रूप, ममता की हो तुम प्रतिरूप। बिन मांगे सब कुछ दे देती हो पर उसका श्रेय कभी नहीं तुम लेती हो। तुममें अतुलनीय वैभव ...