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कविताःइंद्रधनुष ~~~~~~~~~ काले गरजते मेघों की शंखनाद पर चमकती इठलाती मंजूषा चंचल घनन चितेरे बर्षा बूंदें गिरतीं धरापर झमाझम बारिश बनकर छाया था अंधेरा घना .. पर थक गई जब बरखा ...