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आखरी पड़ाव....... आज सोच का सागर गहराया हुआ था,,, यह कैसी घुटन है,,,, जो भीतर ही भीतर सताने लगी है मुझे,,,,, मन चीख रहा है ,,,,,और समुद्र का कोलाहल,,,,,, बाहर ...