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मुक्तक जब आंखों का सूनापन, यारो सावन बन जाता है। जब मरुथल के माफिक मन का, यह गुलशन बन जाता है।। आशाओं की चिता जलाकर, अपना बनता बेगाना। प्रेम वेदना पाता ...