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ज़िन्दगी क़े उजालो से दूर हु... तभी तो इतना मोहताज ओ मजबूर हु... चुभा है पाउँ मै मेरे वफ़ा का कांटा.... तभी तो इतना मायूस हु.... मेरी कलम से..... फ़िज़ा तनवी ...