रात की पलकों पे तारों की तरह

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मेरे सीने पर वो सर रक्खे हुए सोता रहा जाने क्या थी बात मैं जागा किया रोता रहा शबनमी में धूप की जैसे वतन का ख़्वाब था लोग ये समझे मैं ...

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