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रस (निबन्ध) : जयशंकर प्रसाद जब काव्यमय श्रुतियों का काल समाप्त हो गया और धर्म ने अपना स्वरूप अर्थात् शास्त्र और स्मृति बनाने का उपक्रम किया―जो केवल तर्क पर प्रतिष्ठित था―तब ...