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वासना सर्ग भाग-1 चल पड़े कब से हृदय दो, पथिक-से अश्रांत, यहाँ मिलने के लिये, जो भटकते थे भ्रांत। एक गृहपति, दूसरा था अतिथि विगत-विकार, प्रश्न था यदि एक, तो उत्तर ...