शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की रचनाएंःविराजबहू--11

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विराजबहू भाग--११ भोर होते-होते आकाश में घने मेघ छा गये थे। टप्-टप् पानी बरसने लगा था। बीती रात खुले हुए दरवाजे की चौखट पर सिर रखकर नीलाम्बर सो गया था। अचानक ...

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