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श्रीकान्त : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय (बांग्ला उपन्यास) अध्याय 2 पैर उठते ही न थे, फिर भी किसी तरह गंगा के किनारे-किनारे चलकर सवेरे लाल ऑंखें और अत्यन्त सूखा म्लान मुँह लेकर घर ...