सवेरा

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कविता - अपने घर में कर अंधेरा वो चले बन कल का सवेरा कहीं कश्ती से छुटा किनारा कहीं आँखो का टूटा तारा कहीं बहना की सूनी राखी कहीं भाई से ...

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