घरौंदा

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घरोंदा मेरे सपनो का अब टूटने लगा है  जो धरी थी कब से धीरज वो भी छूटने लगा है  कातिल मेरी रूह का सारे आम धूमने लगा है  इस महकती फिज़ाओ ...

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