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एक नादान सा मुसाफिर चला जा रहा था अपनी मस्ती मे गुजरते वक़्त की थपेड़ों से उलझते सुलझते आगे बढ़ता रहा सपने सुहाने सजाते हुए राहों को रोशन करता रहा युही ...