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"वो सुब्हो-शाम नहीं, अब वो दिन वो रात नहीं! ख़बर किसे कि मुहब्बत की कोई ज़ात नहीं !! आंगन में लिए चांद के टुकड़े को खड़ी ; हदीसे-ग़ज़नवी वो ज़िक्रे-सोमनात नहीं ...