रविंद्रनाथ टैगोर की रचनाएंःदो बहनें--2

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दो बहनें भाग-२ शशांक कुड़मुड़ाकर ताश फेंककर उठ खड़ा होता। दोस्त फ़िक़रा कसते-'आहा, बेचारा अकेला बेहिफ़ाज़त मर्द जो ठहरा!' घर आकर शशांक स्त्री के साथ जो वार्तालाप शुरू करता वह न ...

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