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एक ग़ज़ल के आबरू ओ अदब़ पर एक गुस्ताख़ी मुलाहिज़ा करें। 12–122–12–122 // 12–122–12–122 कोई तो तुहमत के पहलुओं पर हमारी ग़म की कहानी लिख दो। जो आंँख में हो लहू ...