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मुक्तक----- तजुर्बे से बूढ़ा हो गया हूं, जिम्मेदारियों से नहीं जिस्म से हारा हुं,समाज की दुश्वारियों से नहीं हर मुश्किल को आसान बनाने की जिद ठानी है यही तमन्ना है मेरी ...