रविंद्रनाथ टैगोर की रचनाएं--भिखारिन

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भिखारिन रबीन्द्रनाथ  1 अन्धी प्रतिदिन मन्दिर के दरवाजे पर जाकर खड़ी होती, दर्शन करने वाले बाहर निकलते तो वह अपना हाथ फैला देती और नम्रता से कहती- बाबूजी, अन्धी पर दया ...

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