ये कशिश नहीं तो क्या है..?

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कशिश सी है कोई तेरे मेरे दरमियाँ ऐसा लगता है,  तभी तो तू हर शाम  मेरे लिए हिचकियाँ भरता है, मैं जागती हूँ देर रात कुछ ना कुछ लिखती हूँ, जब ...

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