अखबार देखिए

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गज़ल मंहगाई की पड़ती है रोज मार देखिए। बदहाल हर इक शख्स है लाचार देखिए।। हर इक सफे पे चोरी डकैती बलात्कार। बस जुर्म से भरा हुआ अखबार देखिए।। दिन रात ...

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